Thursday, October 6, 2016

बेसब्री

आज से पहले तो ऐसा नहीं हुआ था। इतनी बेसब्री से अब तक किसी चीज का इंतज़ार नहीं किया था मैंने। पर आज न जाने क्यूँ इंतज़ार इतना ज्यादा था की अपनी डेस्क पर बैठे-बैठे कभी अपनी कम्प्यूटर की स्क्रीन देखता तो कभी अपने फ़ोन पे झाँकता। एक-एक पल मनों घंटों जैसा लग रहा था। आज इतनी हिम्मत जुटा कर  फेसबुक पर पहली बार उसकी तारीफ़ में कुछ लिखा जो था। और फिर इंतज़ार कर रहा था की वो क्या कहती है इस पोस्ट के बारे में। कभी लगता वो फेसबुक पर ही जवाब देगी। फिर सोचता शायद फ़ोन पे ही मैसेज करे। फिर ये भी ख्याल आता की शायद चैट मैसेंजर पर लिख दे। जो भी जवाब आने के साधन दिखाई दे रहे थे वो सब मैं बारी-बारी से देख रहा था।

थोड़ी ही देर में फेसबुक पर पहला लाइक आया। पर ये क्या, ये तो किसी और का लाइक था। मन में थोड़ी निराशा हुई। फिर सोचा की अभी कहीं व्यस्त होगी शायद। आज ऑफिस भी तो नहीं आयी है। कुछ जरुरी काम में उलझी होगी शायद। फिर दिल को ये कह कर दिलासा दिलाया की मेरी तरह वो कम्प्यूटर के सामने थोड़े न बैठी होगी की फेसबुक पे मेरा पोस्ट देखते ही लाइक या कमेन्ट करेगी। जब उसको फुर्सत होगी तभी फेसबुक देखेगी और तभी तो कुछ जवाब देगी। मैं भी घर पे होता हूँ तो देर से ही फेसबुक देखता हूँ...। खुद को थोड़ा समझा रहा था इतने में २-३ लाइक्स आ गयी थीं जो की दूसरे दोस्तों ने की थी।

अब मैं थोड़ा अपने काम में लग गया था, पर अभी भी दिमाग में फेसबुक का वो पोस्ट ही चल रहा था, जिसमे मैंने इशारों-इशारों में उसके बारे में लिखा था। मन में अनेक तरह के भाव आ-जा रहे थे। एक बार तो ये भी ख़याल आया की कहीं ऐसा तो नहीं कि वो मेरी भावना को समझ ही नहीं पाए और कोई जवाब ही न दे। पर फिर खुद को समझाता कि वो मेरी बात जरूर समझ जाएगी। मैं ये सब सोच ही रहा था की फ़ोन पे आवाज आयी। मैंने जल्दी से अपने फ़ोन को उठाया  तो किसी दोस्त का उसी पोस्ट के ऊपर कमेन्ट आया था। मेरे चेहरे के भाव ख़ुशी से निराश की तरफ बदल गए। अपने दोस्त को मन-ही-मन कोसा 'कोई काम नहीं है इस निकम्मे को। सारा दिन फेसबुक पे बैठा रहता है।'

आख़िर शाम हो गयी पर उसका कोई जवाब नहीं आया न लाइक , न कमेन्ट न ही कोई मैसेज। भारी मन से घर के लिए चल पड़ा। रास्ते भर फ़ोन पर फेसबुक चेक करते आया की शायद अभी कुछ आ जाये। घर पहुँच कर जैसे-तैसे कपडे बदले और निराश मन से सोफे पर बैठा। माँ ने पूछा की तबियत तो ठीक है न... तो बोल दिया की ऑफिस में बहुत काम था सो थक गया हूँ। फिर सोफे पे सिर टिका कर छत की तरफ़ शुन्य में देख रहा था की तभी फ़ोन की स्क्रीन जली। फ़ोन उठा कर देखा तो उसका नाम लिखा था। उसमें लिखा था की उसने अभी-अभी मेरी पोस्ट को लाइक किया था। जल्दी से फेसबुक खोला और इंतज़ार करने लगा की वो कुछ लिखेगी... काफी देर के इंतज़ार के बाद भी कोई कमेंट  नहीं आया। थक कर फ़ोन सोफे पर रख दिया और फिर से सोफे से सिर टिका कर छत की तरफ़ देखने लगा। काफी देर बाद फिर से फ़ोन पे मैसेज का टोन बजा इस बार उठाया तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैसेज में लिखा था की उसने मेरी पोस्ट पर कमेन्ट किया है। झट से फेसबुक खोला और अपनी पोस्ट पे गया। पर कमेंट देख कर मेरी सारी ख़ुशी जाती रही। जिसका मुझे डर सता रहा था वही हुआ। उसने लिखा था "बहुत बढ़िया लिखा है तुमने... वैसे, ये है किसके लिए?" मन में आ रहा था की लिख दूँ की तुम्हारे लिए ही था। पर हिम्मत नहीं कर पाया। फ़ोन की स्क्रीन जल्दी से बंद की, झटके से फ़ोन को सोफे पर पटका और वापस सोफे से सिर टिका कर छत की तरफ देखने लगा। भाव-शून्य, अपलक, स्तब्ध सा गहरी साँस लेते हुए छत से लटके पंखे को ददेर तक देखता रहा और आगे से ऐसे पोस्ट कभी न लिखने के बारे में सोचता रहा....।

No comments:

Post a Comment