'कहाँ रहते हो आज - कल?' सुरेश ने आते ही पूछा और अपना हाथ मेरी तरफ बढाया।
'इधर ही हूँ यार।' मैंने उससे हाथ मिलते हुए कहा।
'काफी दिनों से मिले नहीं। कुछ ज्यादा ही व्यस्त दीख रहे हो आज - कल?' उसने शिकायत भरे लहजे में कहा।
'यार, ऑफिस में इतना काम होता है की किसी से मिल नहीं पाता।' मैंने उसे कहा और हम दोनों मेट्रो की तरफ चल पड़े।
हम मेट्रो स्टेशन पर पहुँचे ही थे तो देखा की सामने से मेट्रो निकल रही थी। अब हमे अगली मेट्रो का इंतज़ार करना था। हम दोनों एक जगह पर खड़े हो कर बातें करने लगे। मैंने प्लेटफ़ॉर्म पर नज़र दौड़ाई। हमारे अलावा दुसरे वाले छोर पर बेंच पर एक लड़की बैठी थी। इसके अलावा प्लेटफ़ॉर्म पर और कोई नहीं था। मैंने उस लड़की की तरफ गौर नहीं किया, क्यूँकी वो काफी दूर थी और सुरेश और मैं दोनों एक-दुसरे से बातें भी कर रहे थे। थोड़ी देर में मैंने देखा की वो लड़की हमारे पास ही आ रही थी।
'अरे मधु! तुम कब आई?' जब वो नजदीक आ गयी तो मैंने उसे पहचानते हुए पूछा।
'मैं थोड़ी देर पहले ही आ गयी थी। पर आपका इंतज़ार कर रही थी।' उसने कहा।
'अच्छा।' मैंने सिर हिलाते हुए कहा। 'मधु, ये है सुरेश। इसका ऑफिस भी मेरे ऑफिस के पास ही है। और सुरेश, ये है मधु, मेरी मेट्रो दोस्त, जो अक्सर मेरे साथ कोचिंग के लिए जाती है। इसका कोचिंग अपने ऑफिस से दो स्टेशन आगे है।' मैंने दोनों को एक-दुसरे से परिचय करवाया और दोनों ने एक-दुसरे का अभिवादन किया।
अब हमारे बीच में बातों का सिलसिला शुरू हुआ। मैंने सुरेश को बताया की कैसे हम दोनों काफी दिन तक एक ही मेट्रो में जाते थे और बातें नहीं करते थे। फिर एक दिन मैंने जाकर मधु को पूछा था की वो रोज कहाँ जाती है? फिर उसने बताया था की वो मेडिकल की तैयारी के लिए कोचिंग करने जाती है। और उस दिन के बाद से हम पढाई, मेडिकल और दूसरी तमाम विषयों पर बातें करने लगे। मैंने सुरेश को ये भी बताया की उसे भी मेरी तरह गिटार, क्रिकेट, सचिन और सोनू निगम पसंद है। इसी बीच में मेट्रो आ गयी और हम तीनो उसमे सवार हो गये। मौका देख कर मधु ने सुरेश को ये भी बताया की कैसे शुरू में हम दोनों आस-पास ही खड़े रहते थे पर एक-दुसरे से बात नहीं करते थे। और जब बात करना शुरू हुआ, तो हम पुरे रास्ते चुप नहीं होते हैं। उसने ये भी बताया, की कभी-कभी हम बात करने के लिए मेरे ऑफिस वाले स्टेशन पर उतर कर काफी देर तक बातें ही करते रहते हैं। इस बात पर हम तीनो ने जोरदार ठहाका लगाया और इसके साथ आस-पास खड़े लगभग सभी लोगों की नज़रें हम तीनो पर आ कर रुक गयी। हमने स्थिति को भांपते हुए अपनी हंसी पर लगाम लगाया और वापस बातों में तल्लीन हो गए।
'अच्छा मधु, तुमसे मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा।' सुरेश ने कहा और सुरेश और मैं दोनों अब मेट्रो से उतर रहे थे। बातों-बातों में कब रास्ता कट गया, ये पता ही नहीं चला।
'तुम तो छुपे रुस्तम निकले यार'। मेट्रो से निकल कर अब हम सीढियां उतर रहे थे। तभी सुरेश ने कहा।
'क्यूँ? क्या हो गया?' मैंने आश्चर्य से पूछा।
'क्या बंदी पटाई है यार।' एक झटके में सुरेश ने कहा।
'क्या? क्या कहा तुमने, जरा फिर से कहना।' मुझे शायद अपने कानों पे विश्वाश ही नहीं रहा था। या शायद सुरेश ने जो कहा मैं उसका मतलब ही नहीं समझ पा रहा था।
'यार मैं मधु की बात कर रहा हूँ। थोड़ी कम उम्र की है, पर प्यार में उम्र कौन देखता है।' सुरेश बहुत सहजता से ये सब कह रहा था। जबकी मैं ये सब सुन कर असहज हो रहा था।
'यार, ऐसी कोई बात नहीं है, वो सिर्फ मेरी एक दोस्त है उससे ज्यादा कुछ नहीं।' मैंने सफाई देते हुए कहा।
'यार, तू मुझसे छुपा नहीं सकता।' उसने कहा।
'अरे, अब इसमें छुपाने वाली कौन सी बात है? मैं सच बोल रहा हूँ'। मेरी आवाज अब तेज हो गयी थी।
'अच्छा, तो एक लड़की तुम्हारे लिए मेट्रो में इंतज़ार करती है, पुरे रास्ते तुमसे बातें करती रहती है, कभी-कभी स्टेशन पर खड़े होकर तुम देर तक बातें करते रहते हो, बिना इस बात की परवाह किये की तुम दोनों ही देर हो रहे हो, तुम्हे एक-दुसरे की पसंद और नापसंद के बारे में भी पता है और तुम कहते हो की वो तुम्हारी बंदी नहीं है। तुम मुझसे छुपाने की कोशिश मत करो यार।' उसने एक सांस में ये सब कह दिया।
मेरा दिल कर रहा था की मैं सुरेश को इस बारे में यकीन दिलाऊं की वो सिर्फ मेरी दोस्त ही है। मैं उसे बताना चाहता था की उसकी उम्र की मेरी भतीजी है। मैं उसे ये भी समझाना चाहता था की अगर वो मेरी प्रेमिका होती, तो मेरे पास उसका मोबाइल नंबर तो जरुर ही होता, हम छुट्टी वाले दिन तो जरुर मिलाने जाते कहीं-न-कहीं। पर शायद मैं ये समझ चूका था की सुरेश मेरी एक भी बात नहीं मानेगा और ज्यादा दलील देने पर वो यही समझेगा की मैं झूठ पे झूठ बोल रहा हूँ। मैंने आगे कोई भी दलील नहीं दी। अब तक हम सीढियां उतर चुके थे और अपने-अपने रास्ते की तरफ चल पड़े थे। मेरे दिमाग में अब भी सुरेश के बातें चल रही थी। कभी ग्लानी सी हो रही थी की एक छोटी सी लड़की को सुरेश मेरी प्रेमिका समझ रहा है और कभी प्रसन्नता का आभास भी हो रहा था की इतने दिनों से मैं ये क्यूँ नहीं सोच पाया था, जो सुरेश ने कुछ मिनटों में ही सोच लिया।