Sunday, January 15, 2012

कैसा ये इश्क़ है

रात के २ बजे होंगे. हर तरफ सन्नाटा था. बाहर कुत्तों ने भी भौकना बंद कर दिया था. थोड़ी-थोड़ी देर में चौकीदार अपना डंडा पटकते हुए आता और चल जाता. इस सन्नाटे के बीच अचानक फ़ोन के थर्राहट से सिद्धी झल्ला कर उठी. उनींदी आँखों से उसने फ़ोन में झाँका और झटके से फ़ोन उठा कर अपने कान में लगा लीया.
"हैल्लो" उसने बड़ी बेचैनी से बोला.
फ़ोन के दूसरी तरफ की ख़ामोशी से सिद्धी समझ गयी थी की ये सिद्धार्थ ही है.
"मुझे पता था की तुम ही हो. कहाँ हो तुम?" सिद्धी ने बिना समय गँवाए पूछा.
"मुझे नहीं पता" थोड़ी बुझी हुई सी आवाज़ में ज़वाब आया.
"तुम्हे नहीं पता? ऐसी कैसी जगह हो कि तुम्हे पता ही नहीं?" सिद्धी की आवाज़ थोड़ी तेज़ हो गयी थी.
"मैं इंडिया में ही हूँ. पर ये जगह कौन सी है ये नहीं पता." थोड़ी नीरस सी आवाज़ में ज़वाब आया.
"देखो तुम नहीं बताना चाहते कि तुम कहा हो तो मत बताओ. पर ये तो बताओ कि तुम कैसे हो और तुम्हारा नंबर क्या है...? हैल्लो... हैल्लो... " इससे पहले कि सिद्धी अपनी बात पूरी करती, फ़ोन कट चूका था. सिद्धी ने वापस कई बार उसी नंबर पर फ़ोन कीया. पर बेकार. फ़ोन नहीं लगा. उसकी बेचैनी को देख कर ऐसा लग रहा था मनो वो इसी एक फ़ोन का इंतज़ार इतने दिनों से कर रही थी. पर फ़ोन आने के बाद बाद भी उसका सवाल अधुरा ही था कि वो है कहाँ...

सिद्धी अपलक फ़ोन पे छपे नंबर को देख रही थी और वो सारे दिन याद कर रही थी जब उसे सिद्धार्थ कि कोई खबर नहीं थी. वो लाख कोशीश के बावजूद भी ये पता नहीं कर पा रही थी कि सिद्धार्थ है कहाँ. उसके सारे फ़ोन, जिनसे उसने कभी सिद्धी को फ़ोन किये थे, बंद थे. उसने अपना फ़ेसबुक, ऑरकुट और दूसरे प्रोफाइल बंद कर दिए थे. उसके घर वालों को भी उसका पता या फ़ोन नंबर मालूम नहीं था. सिद्धी ने गूगल से भी उसके बारे में कई बार पूछा. पहले तो गूगल कुछ न कुछ ज़वाब दे देता था, पर अब वो भी सिद्धार्थ के बारे में कुछ नहीं बता पा रहा था. शायद सिद्धी के सिद्धार्थ को छोड़ कर बाकि तमाम सिद्धार्थ गूगल के लीए महत्वपूर्ण हो गए थे. पर सिद्धी के लीए उसका सिद्धार्थ कितना महत्वपूर्ण था वो गूगल को कभी समझ नहीं आएगा.


--- क्रमशः