Saturday, July 31, 2010

एक रिक्शे की सवारी

आज शायद जिंदगी का पहला दिन था, जब ऑफिस के लीए मैं समय से पहले निकल पड़ा था। हेड-फ़ोन पे गाने सुनते हुए मैं आराम से मेट्रो स्टेशन की तरफ जा रहा था। मेट्रो स्टेशन पर आज कल रिक्शों की भीड़ लगी रहती है। मैं उन रिक्शों के बीच से निकल कर मेट्रो स्टेशन के सीढ़ियों की ओर बढ़ रहा था की तभी सामने से एक खुशबू का झोंका आया। मैंने अपना ध्यान मेरे कान में बज रहे गाने से हटा कर सामने देखा तो बस देखता ही रह गया।

सामने से एक बहुत ही खुबसूरत लड़की सूर्ख़ लाल रंग के लिबास में लिपटी हुई चली आ रही थी। उसके होंठों का गुलाबी रंग दूर से ही दीख सकता था। उसके काले-सीधे बाल आँखों के ऊपर से होते हुए गाल और होंठ तक आ रहे थे, जिन्हें वो बार-बार अपने लम्बे-पतले हाँथ की लम्बी उँगलियों के सहारे कान के ऊपर से पीछे की तरफ कर रही थी। मैं उसकी झलक में मंत्र मुग्ध सा हो गया था।

वो सीढियां उतरती हुई, ठीक मेरे बगल से होते हुए नीचे उतर गई। उसके साथ-ही-साथ मैं भी पीछे मुड़ कर उसे जाते हुए देखता रहा। वो सीधे जा कर एक खली रिक्शे में बैठ गई। रिक्शे वाला दूसरी सवारी का इंतज़ार करने लगा, क्युकी वो २-लोगों को एक साथ रिक्शे में लेकर जाता है। मैं इस कदर मंत्र मुग्ध था, की कुछ समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या कर रहा हूँ। मैं चुप-चाप जा कर रिक्शे में बैठ गया। रिक्शे वाले ने कुछ पूछा, मैंने सिर्फ हाँ में जवाब दिया, और वो चल पड़ा। अब मुझे एहसास हुआ, की मेरे बगल में बैठी लड़की कुछ असहज महसूस कर रही है. इसके साथ ही, मैं उसे अब देख भी नहीं सकता था, क्यूँकी वो मेरे साथ बैठी थी।

"आप क्या कहीं नौकरी करती हैं?" मैंने बात शुरू करने की ग़रज से पूछा। हालांकि मेरा इरादा ये भी था की उसके बारे में कुछ और जान लूँ।
"नहीं, मैं अभी पढाई करती हूँ" उसने अपने मोबाइल में झांकते हुए बोला। इसके साथ ही वो चुप हो गयी और अपने मोबाइल में कुछ लिखने लगी। थोड़ी देर तक वो अपने मोबाइल के साथ ही खेलती रही। शायद वो मेरे साथ बैठने में सहज महसूस नहीं कर पा रही थी। मैं आदतन उसकी मोबाइल में झाँक कर देखना चाह रहा था, की वो कर क्या रही है, पर मैं मोबाइल को नहीं देख पा रहा था।

"क्या आप असहज महसूस कर रही हैं?" मैंने बात फिर से शुरू करते हुए पूछा।
"नहीं, ऐसी बात नहीं है।" उसने कहा।
"तो क्या पढाई करती हैं आप?" मैंने जानना चाह।
"मैं फैशन डिजाइनिंग कर रही हूँ" और इसके साथ ही वो फिर से अपने फ़ोन से खेलने में मशगुल हो गयी।
अब मुझे समझे में आ गया की मैं ३ किलोमीटर की रिक्शे की सवारी एक अनजान लड़की के साथ करने जा रहा हूँ, जबकि मुझे इस समय ऑफिस के लिए मेट्रो पे बैठा होना चाहिए था। "मैंने भी फैशन डिजाइनिंग की हुई है और आज-कल एक फैशन हाउस में काम करता हूँ।" सारा रास्ता मुझे चुप-चाप न काटना पड़े, इस ग़रज से मैंने कहा।
"कौन से इंस्टिट्यूट से पढाई की थी आपने?" उसने थोड़ी दिलचस्पी लेते हुए कहा।
मैंने एक इंस्टिट्यूट का नाम लेते हुए कहा "ओखला में है ये"।
"हाँ मैं जानती हूँ उसके बारे में। मेरा बड़ा मन था वहाँ से पढाई करने का। पर क्या करूँ, ऐडमिशन ही नहीं हो पाया।" उसने थोड़े से रुआंसे शब्दों में कहा.

इसके साथ ही हमारे बातों का सिलसिला चल पड़ा। पढाई, पसंद और दोस्तों के बारे में बात करते-करते कब उसका इंस्टिट्यूट आ गया, हमे पता भी नहीं चला। वहाँ उतर कर उसने पूछा, "आप कहाँ जा रहे हैं, ये तो मैंने पूछा ही नहीं"
"हाँ। मुझे आगे वाले बैंक तक जाना है" मैंने कहा।
"फिर अपना मोबाइल नंबर दे दीजिये, मैं कभी फ़ोन करुँगी आपको" उसने कहा।
मैंने अपना नंबर दिया और बदले में उसका नंबर पूछ कर नोट करने लगा। वो अब तक अपने दोस्तों के साथ अन्दर जा चुकी थी।

"किस बैंक में जाना है आपको?" रिक्शे वाले ने पूछा.
"यार, वापस मुझे मेट्रो स्टेशन छोड़ दो।" मैंने कहा।
"पर अभी तो आप कह रहे थे की आपको बैंक जाना है" उसने उत्सुक होते हुए पूछा।
"हाँ, सोच रहा था। पर अब नहीं जाना। तुम वापस चलो" मैंने थोड़े रूखे स्वर में कहा।

अब मैं अकेले ही उसी रिक्शे में वापस मेट्रो स्टेशन की तरफ चला आ रहा था। मैंने घड़ी देखी तो १० बज चुके थे। मेरे दिमाग में सिर्फ एक ही ख़याल आ रहा था, 'आज तो मैं जल्दी ऑफिस पहुंचना चाह रहा था, पर आज कुछ ज्यादा ही देर हो गयी।' मैंने अपना फ़ोन निकला, ताकी ऑफिस में बता सकूँ की मैं जरा देर देर से ऑफिस आऊंगा। फिर ११ बजे तक ऑफिस पहुँच जाने के ख़याल से ऑफिस फ़ोन करने का इरादा छोड़ दिया। अब मेरा रिक्शा खुली सड़क पे फर्राटे भरते हुए दौड़ रही थी। ठंडी और तेज हवा मेरे कानों को छूते हुए निकल रही थी और मैं सिर्फ बीते ३० मिनट को बार-बार अपने मन में दुहरा रहा था।



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